डॉ. कैलाश द्विवेदी (नेचुरोपैथ)

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Monday, December 4, 2017

ह्रदय के कक्ष

आधार से शिखर ह्रदय एक पेशीयपट (Septum) द्वारा दायें एवं बाएं दो भागों में विभाजित रहता है जिसका आपस में कोई सम्बन्ध नही होता है | ह्रदय का सम्पूर्ण दायाँ भाग अशुद्ध रक्त के लेन-देन से सम्बंधित है एवं बायाँ भाग शुद्ध रक्त के लेन-देन से सम्बंधित है | दायाँ एवं बायाँ दोनों भाग पुनः एक अनुप्रस्थ पट (Transverse septum) द्वारा विभाजित होकर एक ऊपर एवं एक नीचे का कक्ष बनाते हैं | इस प्रकार ह्रदय का सम्पूर्ण भीतरी भाग 4 कक्षों (Chambers) में बंटा रहता है | दाहिनी एवं बायीं ओर के ऊपरी कक्ष क्रमशः दायाँ आलिन्द या एट्रियम (Right Atrium) एवं बायाँ आलिन्द (Left Atrium) कहलाते हैं, तथा दाहिनी एवं बायीं ओर के निचले कक्ष क्रमशः दायाँ निलय (Right Ventricle) एवं बायाँ निलय (Left Ventricle) कहलाता है |

बायीं ओर के दोनों कक्ष अर्थात आलिन्द व निलय एक छिद्र के द्वारा आपस में सम्बंधित रहते हैं | ठीक इसी प्रकार दाहिने ओर के दोनों कक्ष आलिन्द व निलय भी एक छिद्र के द्वारा आपस में सम्बंधित रहते हैं | इन छिद्रों पर कपाट (वाल्व) लगे रहते हैं | यह वाल्व इस प्रकार से लगे होते हैं कि रक्त आलिन्द (Atrium) से निलय (Ventricle) में जा तो सकता है परन्तु वापस लौट नहीं सकता |
ह्रदय के सभी कक्षों में सम्बंधित रक्त को ले जाने वाली नलिकाओं के छिद्र (Opening) भी उनसे सम्बंधित कक्ष में ही खुलते हैं |

दायाँ आलिन्द (Right Atrium)

दाहिने आलिन्द में समस्त शरीर में संचरित हुआ आक्सीजन रहित रक्त लौटकर संग्रहित होता है |
शरीर के विभिन्न भागों से आने वाली शिराएँ मिलकर दो बृहत् शिराएँ बनाती हैं जो – उर्ध्व महाशिरा (Superior vena cava) एवं निम्न महाशिरा (Inferior vena cava ) कहलाती हैं | यह शिराएँ दाहिने आलिन्द में दो अलग-अलग छिद्रों द्वारा खुलती हैं | उर्ध्व महाशिरा शरीर के ऊपरी भाग से एवं निम्न महाशिरा शरीर के निचले भाग से अशुद्ध रक्त को लाकर दाहिने आलिन्द में पहुंचाती हैं |
दाहिने आलिन्द का कार्य केवल रक्त को ग्रहण करना है | इस कक्ष में रक्त को पम्प करने का कार्य बहुत कम होता है इसलिए इसमें संकुचन की क्रिया अन्य कक्षों की अपेक्षा कम होती है अतः इस कक्ष की भित्तियां अपेक्षाकृत पतली और कमजोर होती हैं |
रक्त गृहण करने के बाद इसे रक्त को इतना ही धक्का देना पड़ता है कि वह बीच के छिद्र को खोलकर दाहिने निलय में चला जाये | (रक्त का दाब अधिक होने के कारण यह निलय की तरफ ही बढ़ता है, महाशिराओं में वापस नही जाता) |

दायाँ निलय (Right Ventricle)

दायें आलिन्द (Right Atrium) से अशुद्ध रक्त दायें एट्रियोवेंट्रिकुलर छिद्र से होकर दायें निलय में आकर गिरता है | दायें आलिन्द के संकुचन से रक्त को धक्का मिलता है जिससे त्रिकपर्दी कपाट (Tricuspid Valve) के पट स्वयं खुल जाते हैं और अशुद्ध रक्त दायें निलय में पहुँच जाता है | दूसरे ही क्षण दायें निलय में संकुचन होता है, फलस्वरूप रक्त को बाहर निकल जाने के लिए धक्का मिलता है |
दायें निलय में एक छिद्र होता है जिसे फुफ्फुसीय छिद्र (Pulmonary orifice) कहते हैं इस छिद्र से होकर फुफ्फुसीय धमनी (Pulmonary artery) निकलती है जो आगे चलकर ह्रदय से बाहर निकलकर दो भागों में होकर फुफ्फुसों में चली जाती है | दायें निलय से अशुद्ध रक्त शुद्ध होने के लिए इस धमनी में से होकर फुफ्फुसों में चला जाता है |
दायें निलय से जैसे ही अशुद्ध रक्त फुफ्फुसीय धमनी में जाता है वैसे ही इनके बीच स्थित पल्मोनरी वाल्व (Pulmonary valve) बंद हो जाता है जिससे अशुद्ध रक्त वापस दायें निलय में न लौट सके | (नोट : फुफ्फुसीय धमनी के अतिरिक्त सभी धमनियों में शुद्ध रक्त बहता है)
दायें आलिन्द (Right Atrium) की अपेक्षा दायें निलय (Right Ventricle) की भित्तियां अधिक मोटी एवं मजबूत होती हैं क्योंकि इसे रक्त को शुद्द करने हेतु फुफ्फुसों में पहुँचाने के लिए दायें आलिन्द की अपेक्षा अधिक संकुचित होकर रक्त को पम्प करना पड़ता है |

बायाँ आलिन्द (Left Atrium)

ह्रदय के बाएं भाग का ऊपरी कक्ष, बायाँ आलिन्द कहलाता है | यह दायें आलिन्द से कुछ छोटा होता है | इसकी भित्तियां दायें आलिन्द की अपेक्षा कुछ मोटी होती हैं | इस आलिन्द में चार छिद्रों के द्वारा चार फुफ्फुसीय शिराएँ आकर खुलती हैं | इन शिराओं का कार्य आक्सीजन युक्त शुद्ध रक्त को फुफ्फुसों से बाएं आलिन्द में लाना होता है |

बायाँ निलय (Left Ventricle)

ह्रदय के बाएं भाग का नीचे का कक्ष बायाँ निलय कहलाता है | यह अन्य तीनों कक्षों में सबसे बड़ा कक्ष होता है | इसकी भित्तियां भी अन्य सभी कक्ष भित्तियों की अपेक्षा मोटी होती है |
बाएं निलय में एक छिद्र होता है जिसे महाधमनी छिद्र (Aorta orifice) कहते हैं | इस छिद्र से होकर महाधमनी(Aorta) निकलती है जो शरीर के विभिन्न भागों तक शुद्ध रक्त पहुँचाने का कार्य करती है |
बाएं आलिन्द के संकुचन से शुद्ध रक्त बाएं निलय में भर जाता है | दूसरे ही क्षण बाएं निलय की बारी आती है, इससे पहले ही बाएं आलिन्द एवं निलय के बीच का द्विक्पर्दी कपाट या माइट्रल वाल्व (Mitral Valve) बंद हो चूका होता है | बाएं निलय के संकुचन से शुद्ध रक्त के धक्के से महाधमनी का द्वार खुल जाता है, जिससे होकर रक्त शरीर के विभिन्न भागों तक पहुँचता है | महाधमनी के मुख पर भी कपाट होता है जो रक्त को वापस निलय में आने से रोकता है |
इस प्रकार बायाँ निलय शरीर के ऊतकों को पोषक तत्व एवं आक्सीजन प्रदान करने हेतु वहां तक शुद्ध रक्त वितरित करने का महत्वपूर्ण कार्य सम्पादित करता है |

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